It is really important to be cautious about the comments during the hearing

Editorial: सुनवाई के दौरान टिप्पणियों पर सजगता वास्तव में जरूरी

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It is really important to be cautious about the comments during the hearing

It is really important to be cautious about the comments during the hearing: यह काफी संवेदनशील मसला है, क्योंकि अदालतों में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता एवं जजों की एक-एक बात और एक-एक शब्द को गंभीरता से सुना जाता और उसके अर्थ निकाले जाते हैं। हालांकि बीते कुछ समय से ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं, जब जज अदालत में सुनवाई के दौरान ऐसी टिप्पणी कर रहे हैं, जोकि अगंभीर और संदर्भ के अनुकूल नहीं होती। पिछले दिनों कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज के द्वारा बेंगलुरु के एक हिस्से को मिनी पाकिस्तान बताए जाने की घटना को सुप्रीम कोर्ट ने भी अति गंभीरता से लिया है। इस प्रकरण में अब सुप्रीम अदालत ने जजों को निर्देशित किया है कि वे सुनवाई के दौरान टिप्पणी को लेकर सावधान रहें।

माननीय अदालत ने कहा कि भारत के किसी भी हिस्से को पाकिस्तान कहना देश की अखंडता एवं एकता के विरूद्ध है। निश्चित रूप से यह बात सभी के लिए स्वीकार्य है। आखिर किसी दूसरे देश का संदर्भ लेकर अपने देश के बारे में एक अदालत में टिप्पणी करना चिंता की बात तो है ही। गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई के दौरान ऐसे तथ्य सामने लाए गए थे कि जिस इलाके की बात हो रही थी, उसमें समुदाय विशेष के लोगों की संख्या बहुत है और वहां अतिक्रमण के मामले को लेकर यह सुनवाई जारी थी। इस दौरान जज की ओर से ऐसी टिप्पणी की गई थी। बेशक, यह टिप्पणी आपत्तिजनक है और इसका विरोध होना ही चाहिए। निश्चित रूप से जज को चाहिए था कि वे ऐसी टिप्पणी से बचते और कुछ आधिकारिक टिप्पणी करते।

इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को सुनवाई के दौरान बेहद सतर्क होकर टिप्पणी करने का आदेश दिया था। वैसे भी इन दिनों मामलों की सुनवाई लाइव प्रसारित हो रही है, जिसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान दिए गए बयानों से काफी प्रभाव पड़ता है और प्रतिष्ठा को बड़ी चोट लग सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ज्यूडिशियल सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी की बात करते हुए कहा था कि लाइव और वर्चुअल सुनवाई आ जाने के बाद से काफी पारदर्शिता देखने को मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिस्टम को पहले कभी नहीं देखी गई पारदर्शिता करार दिया है। साथ ही मामलों की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट और निचली अदालतों को सोच समझ कर बयान देने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल जुलाई में दिए गए एक आदेश को रद्द करते हुए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह बातें कही गई थीं। इसके बाद फिर कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज की ओर से ऐसी टिप्पणियां सामने आई हैं।  माननीय सुप्रीम अदालत का कहना है कि न्याय करने का मूल तत्व निष्पक्ष और न्यायसंगत होना चाहिए। वहीं यह भी जरूरी है कि प्रत्येक अपने झुकाव से अवगत हो।

गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट के एक जज की ओर से भी एक विवादित टिप्पणी आई है, जिसमें जज ने कहा है कि एक विधवा को मेकअप की क्या जरूरत है। यह अपने आप में महिला विरोधी टिप्पणी है। एक समय देश में विधवा विवाह को ही स्वीकार नहीं किया जाता था, लेकिन वह दौर बीत गया। लेकिन गांव-देहात और शहरों में भी लोगों की सोच ऐसी है, जब वे एक विधवा महिला के प्रति ऐसी बेरूखी दिखाते हैं, जोकि उसके लिए असम्मानजनक होती है। आखिर यही बात उस पुुरुष के बारे में कही जा सकती है, जोकि पत्नी के देहांत के बाद भी शानदार सूट-बूट पहने और इत्र छिडक़ कर सडक़ पर नजर आ सकता है।

बेशक, मामला खुद को नियंत्रित करने का है, लेकिन ऐसा स्वनियंत्रण केवल महिलाओं के नाम ही क्यों है। पति की मौत हो जाए तो उन्हें अपने बाल मुंडवा लेने चाहिए, यह रवायत अब भी पिछड़े इलाकों में देखने को मिल जाती है। काशी में उन महिलाओं को देखा जा सकता है, जिनके पति का देहांत हो चुका है और वे वैधव्य का जीवन व्यतीत कर रही हैं। क्या उनके जीवन में रंग समाप्त हो गए हैं। दरअसल, विधवा होना कोई अपराध नहीं है और न ही अपने आप को संवारना कोई अपराध है। ऐसे में हाईकोर्ट के एक जज की ओर से ऐसी टिप्पणी समाज में गलत संदेश देती है। इस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने अगर नाराजगी जाहिर की है तो यह सही ही है। माननीय सर्वोच्च अदालत ने पटना हाईकोर्ट को जमकर फटकारा है। दरअसल, इस प्रकार की टिप्पणियों की अदालत से अपेक्षा नहीं की जा सकती। जजों का काम न्याय प्रदान करना है, उनकी एक-एक बात ईश्वर के मुख से निकली बात की तरह समझी जाती है। ऐसे में अगर वे सोच समझ कर बोलते हैं तो उसकी गंभीरता बेहद मूल्यवान होगी, लेकिन हल्की टिप्पणियों से जहां उनकी न्यायिक श्रेष्ठता को ठेस पहुंचती है, वहीं न्यायपालिका पर विश्वास भी डांवाडोल होता है। 

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